मूडी जी ने मोडी जी की साख पर बट्टा लगा दिया - मोडी जी के भरोसे दिये कर्ज
की वसूली में जोखिम बढ़ गया है। परिवारों की हालत विपत्तिजनक है, रोजगार
सृजन हो नहीं रहा है; गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की साख बची नहीं है,
उनमें कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं, और वो कर्ज न दें तो घर, दुकान, ट्रक,
कार की बिक्री नहीं। मंदी टिक गई है, लंबी चलेगी।
उधर मोडी जी गुस्से में हैं। इन अमरीकी-यूरोपी पूँजीपतियों को खुश करने के लिए कितने 'सुधार' किये, पर ये अहसानफरामोश कहते हैं बाजार में मेरी कोई साख ही नहीं। निर्मला जी को मैदान में उतारा गया, वो फट पड़ीं - हमारी बुनियाद तो बहुत मजबूत है, हमारा रथ सबसे तेज भागता है, बॉन्ड पर ब्याज दर भी घट गई! जब तुम आए थे, तुम्हें सब समझाया था, अपनी परेशानी भी बताई थी, खातिर-तवज्जह भी जोरदार की थी। तुम्हें फिर भी बाजार में हमारी साख दिखाई न दी!
निर्मला जी, इत्ती सी बात समझने को तो जेएनयू में अर्थशास्त्र भी न पढ़ना पड़ता। कोई पुरानी फिल्म ही देख लेतीं कि स्वागत-सत्कार से कर्ज देने वाले लालाजी दोस्त नहीं बनते, न तकलीफ बताने से उनका दिल पसीजता। उन्हें सिर्फ अपना सूद और मूल दिखाई देता है, उनकी बुनियाद तो वही है। वो बुनियाद कमजोर हो तो आपसदारी की बात खत्म, जमीन रहन रखो या सोना गिरवी रखो, बस।
जहाँ तक बॉन्ड पर ब्याज दर कम होने की बात है तो वजह अर्थव्यवस्था में उत्पादक निवेश की गुंजाइश खत्म होना है। बाजार में कर्ज देने से वापस आएगा ऐसी साख किसी कंपनी की नहीं। सब सेठ लोग शेअर बाजार की सट्टेबाजी में पैसा झोंकने का दम भी न रखते। पिछले एक महीने से 2 लाख करोड़ रु इफ़रात नकदी पड़ी है। रिजर्व बैंक ने 5 बार रीपो रेट कम किया पर कोई लेने वाला नहीं है। उल्टे रिवर्ज रीपो करना पड़ रहा है। 20 हजार करोड़ की बोली मांगते हैं तो 60 हजार करोड़ आ रहा है। सेठ लोग रिजर्व बैंक में कम ब्याज पर मूल बचाने में ही खुश हैं। ये बुनियाद की मजबूती का नहीं, बुनियाद के पूरा ही दरक जाने का सबूत है, निर्मला बेन!
मोडी जी की करामात यही है कि देशी-विदेशी सूदखोरों की नजर में भारतीय अर्थव्यवस्था की साख इतनी ही रह गई है। मूडी इन सूदखोरों की एजेंसी है, उनके हित में आपकी असलियत जाहिर कर रही है।
उधर मोडी जी गुस्से में हैं। इन अमरीकी-यूरोपी पूँजीपतियों को खुश करने के लिए कितने 'सुधार' किये, पर ये अहसानफरामोश कहते हैं बाजार में मेरी कोई साख ही नहीं। निर्मला जी को मैदान में उतारा गया, वो फट पड़ीं - हमारी बुनियाद तो बहुत मजबूत है, हमारा रथ सबसे तेज भागता है, बॉन्ड पर ब्याज दर भी घट गई! जब तुम आए थे, तुम्हें सब समझाया था, अपनी परेशानी भी बताई थी, खातिर-तवज्जह भी जोरदार की थी। तुम्हें फिर भी बाजार में हमारी साख दिखाई न दी!
निर्मला जी, इत्ती सी बात समझने को तो जेएनयू में अर्थशास्त्र भी न पढ़ना पड़ता। कोई पुरानी फिल्म ही देख लेतीं कि स्वागत-सत्कार से कर्ज देने वाले लालाजी दोस्त नहीं बनते, न तकलीफ बताने से उनका दिल पसीजता। उन्हें सिर्फ अपना सूद और मूल दिखाई देता है, उनकी बुनियाद तो वही है। वो बुनियाद कमजोर हो तो आपसदारी की बात खत्म, जमीन रहन रखो या सोना गिरवी रखो, बस।
जहाँ तक बॉन्ड पर ब्याज दर कम होने की बात है तो वजह अर्थव्यवस्था में उत्पादक निवेश की गुंजाइश खत्म होना है। बाजार में कर्ज देने से वापस आएगा ऐसी साख किसी कंपनी की नहीं। सब सेठ लोग शेअर बाजार की सट्टेबाजी में पैसा झोंकने का दम भी न रखते। पिछले एक महीने से 2 लाख करोड़ रु इफ़रात नकदी पड़ी है। रिजर्व बैंक ने 5 बार रीपो रेट कम किया पर कोई लेने वाला नहीं है। उल्टे रिवर्ज रीपो करना पड़ रहा है। 20 हजार करोड़ की बोली मांगते हैं तो 60 हजार करोड़ आ रहा है। सेठ लोग रिजर्व बैंक में कम ब्याज पर मूल बचाने में ही खुश हैं। ये बुनियाद की मजबूती का नहीं, बुनियाद के पूरा ही दरक जाने का सबूत है, निर्मला बेन!
मोडी जी की करामात यही है कि देशी-विदेशी सूदखोरों की नजर में भारतीय अर्थव्यवस्था की साख इतनी ही रह गई है। मूडी इन सूदखोरों की एजेंसी है, उनके हित में आपकी असलियत जाहिर कर रही है।
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